ये होली के रंग हैं
इस होली पर, एक नया सा रंग है
और सोने पे सुहागा ये
कि इस समय हम बच्चों के संग हैं!
कल शाम से
ये बच्चे
मुझ बोरिंग से इंसान को
कर रहें है उत्साहित ,
और जबरदस्त तरीके से
प्रोत्साहित!
कि कल पक्का चलना है तुम्हे
हमारे संग
निकलो इस, लाइफ इन दी रूम, वर्क फ्रॉम होम
से बाहर
और खेलो हमारे साथ होली
कभी तो हो लो मस्त मलंग !
बच्चों के कुछ प्यारे से दोस्त भी, आ गये है
शिकायत का पुलिंदा लेकर
कि आते नहीं तुम नीचे साथ खेलने
मोटे पेट वाले अंकल
बाँध रखी है पैरों में
क्या आंटी ने
कोई संकल?
उत्सुक, आनन्दित, प्रफुल्लित
वाह रे ये बच्चे!
क्या है जो ना सीख पाऊं इनसे?
संभाल ली है
इन्होने अपनी छोटी सी पिटारी
जिसमे है
पचास ग्राम गुलाल
इतना ही एक दो रंग
और
बन्दूक जैसी छोटी सी पिचकारी!
छज्जे पर तैयार रहेगा
कुछ लीटर पानी
एक छोटी बाल्टी
भतीजा रो रहा है
बिना बात के
बगल में बैठा, मार के पालथी
होली के आने पर
इस बार
कुछ राहत है
कि
अपने अपने घरों से बाहर निकल पाएंगे
रंग खेलेंगे
गले अपने नये पुराने पड़ोसी को
खुले मन से लगा पाएंगे
जो मन कुछ उदास थे
कुछ जीवन जो नाराज थे
हो भी सकते हैं ठीक
शायद कुछ उमंगों में
इस बार की होली की रंगों में
बच्चों से सीखा
वर्तमान में रहना
उत्सुक रहना
ध्यान से देखना, जानना
ज्यादा नहीं मानना
तो निश्चय है अटल
कल बनते हैं
थोड़े से बच्चे
अक्ल के कच्चे
रंगों के सच्चे!
- संदीप गर्ग
-- स्टूडेंट ऑफ़ सॉफ्टवेयर टैस्टिंग
-- स्टूडेंट ऑफ़ लाइफ